Saturday 16 November 2013

हम सबकी जिंदगी से जुड़े है वो

सचिन के बिना किके्रट के बारें में सोचनाए भावनाओं का खालीपन सा लगता है। जबसें क्रिकेट देखना शुरू किया तब से उन्हें ही देखा है। आज आखिरी बार उनका पिच पर होना मन को अखर रहा है। उनकी विदाई की बात सुनते ही सबके किस्से शुरू हो जाते है। रेडियो से लेकर टीवी स्क्रीन पर लाखों करोड़ो फैंस की दुआए डांट के साथ सचिन अपना कारवां बढ़ाते चले आए। आज अपने करियर का आखरी मैच खेलकर पैविलयन लौट गए। जहां से हमें दोबारा वो पिच पर आते नहीं दिखेगे। ड्राइंगरूम में बैठकर सचिन के किस्सेए उनके लिए दुआएंए उनके लिए लड़ते हम भाई.बहनए और मां का भी पूछना की सचिन ने कितने रन बनाए है अब नहीं होगा। क्रिकेट का यह पुजारी आज करोड़ो फैन्स की दुआएं लेकर आगे बढ़ रहा है। आखिरी बार पिच को छूते हुए खुद तो रो रहा है पर हमें भी रूला रहा है। खुशी व दुख के आंसूओं के इस सराबोर से आगे सचिन ने हमें हमेशा सिखाया है। लगातार मेहनत करनाए सीखने की ललक रखना  हम जैसे उनके चाहने वालो के लिए हमेशा प्रेरणादायक रही है। उनहोंने हमेशा क्रिकेट पर छाये काले बादलों का अपने बल्ले से जवाब दिया है और किके्रट पर छाई आंधी को उन्होंने दूर भगाया है। उनका जाना तो बस एक रस्म है वो हमारें दिल में बसे हुए हैं वहां से जाना नामुमकिन है। इन पलों को सहेज लीजिएए क्योकि ये अहम पलों में से एक है।

Friday 26 July 2013

बावरी

बावरी सी धडकनों में
बावरा एहसाह है,
बावरी से होठों पे
बावरा सा साज है
बावरी सा गीत मेरा,
बावरा सा राग है
बावरें से मन में,
बावरी सी दौड़ है
बावरें के ख्यालों में
बावरा सा चेहरा,
बावरी कहानी मेरी,
बावरी सी हूं मैं
बावरी सी राहों में,
बावरी सी चाल है
बावरें हुए है आज,
बावरें हम कल में है
बावरी सी बोली में,
बावरें से शब्द है
बावरें सी दुनिया में,
बावरें से पात्र है
बावरी सी सांसे,
बावरा सा झाल है
बावरी सी शाम में,
बावरे से हम है

Thursday 11 July 2013

ईमानदारी सबसे मंहगा शौक है.......

मैं कभी उनसे मिली तो नही पर 5 मिनट की टीवी पर आई रिर्पोट ने मुझे इतना प्रभावित कर दिया कि उन पर लिखे बिना में रह ना सकी। भगवती प्रसाद की मौत के बाद मैं उन्हें जान पाई। यूपी के श्रावस्ती जिले से दो बार विधायक रहे भगवती प्रसाद की मौत गरीबी में इलाज न करा पाने की वजह से हुई। उनकी कफन तक के लिए पैसे पड़ोसियों ने दिए हैं। भगवती जी कहते थे कि बंगल] गाड़ी हो या ना हो ईमानदारी है हम उसमें रहते है। ईमानदारी ही मेरी सबसे बड़ी दौलत है। यही कारण है कि दो बार विधायक रहें] पूर्व विधायक के पास अपने ईलाज तक के लिए रूपये नही थे। पता चला है 1966 में 1800 रूपये की भैंस बेचकर भगवती प्रसाद जी ने चुनाव लड़ा था। विधायक के बाद उन्होंने अपना छोटा सा काम शुरू  कर दिया। अपनी ईमानदारी के कारण भले ही उन्होंने गरीबी में जीवन बिताया] बीमारी में बिना इलाज के रहे। आज के इस समाज में अगर सबसे बड़ा मंहगा शौक है तो वो ईमानदारी है। जिसकी कीमत दिखती नही महसूस की जाती है। भगवती प्रसाद जैसे नेता, इंसान समाज बहुत है बस उनकी कीमत को बहुत कम प्राइम टाइम, अखबारों मे दिखाया जाता है। आज की आपाधापी व घोटालों में सबसे महंगा शौक कही छुप ही जाता है। इनके बारे में लिखना और पढ़ना चाह रही थी लेकिन गूगल पर भी इस ईमानदारी के पूजक के बारें में ज्यादा जानकारी नही थी। बस यही भगवती प्रसाद की आत्मा को शांति मिले।

Monday 8 July 2013

मन की.......

आज कुछ ख्वाब फिर रचें गए

आज कुछ बुनियाद फिर रखी गई

आज से फिर सवरनें की कोशिश की गई

आज आवाज मन की फिर सुनी गई

Monday 3 June 2013

ये अपना देश है..........

ये अपना देश है यहां तो घुटन महसूस होती है। आज से दो महीने पहले मैं अपने एक नये सफर पर निकली मुझे एक छोटी सी नौकरी मिली जिसके लिए रोज मुझे लगभग डेढ़ घंटे का सफर टेÑन, आॅटो और कुछ खुद से तय करना पड़ता है। मैं आजाद पंरिदा खुशी-खुशी अपनी नजर से सामाज देखेने निकल पड़ीआज पूरे दो महीने हो चुके है और इन दो महीनों ने मुझे जहां मेरी जिंदगी की पहली कमाई, मेरा पहला आॅफिस, मेरा पहला काम दिया है वही इस समाज ने मुझे बहुत रूलाया भी है। मुझे यकीन नही होता कि ये मेरा देश मेरा समाज है जो हर वक्त किसी ना किसी को कुचलता रहता है। मैं बड़ी खुशमिजाज आज एक मुरझाया हुआ फूल बन चुकी हूं। मुझे 65 साल पुराने इस आजाद देश में घुटन महसूस होती है। टेÑन के इंतजार में स्टेशन पर घूरती नजरें, और जब कहां जाएं जरा सुधर जाओं तो बेशर्मी भरे सवाल कि हमनें किया क्या है?, हर वक्त वो बयानबाजी जो चार लड़के अपने गुप्र मैं खड़े होकर मुझ जैसी लड़की पर करते नजर आते है। वो अपने पिता की उम्र के समान अकंल जो बेशर्मी भरी नजरों से देखते है। मैं रोना नही चाहती, मैं रुकना नही चाहती बस चाहती ये हूं कि इन जानवरों का इलाज हो जाएं। क्योकि ये एक ऐसा माहौल बना रहे है जो ये कहने पर मजबूर कर रहे है कि बाहर निकलने से बेहतर घर में ही दफन हो जाओ। ऐसा नही कि इस सफर मैं मुझे सिर्फ जानवरों से ही पाला पड़ा है। दुनिया अच्छाई से चलती है चाहे वो सिर्फ 2 प्रतिशत ही क्यो ना हो और मुझे वो भी मिलें पर इन बाकी के जानवरों का क्या जो घर से बहुत सारी लड़कियों को निकलने ही नही देते। लोग दिल्ली जैसी घटना पर भी जब लड़कियों की कमी निकालते है पर उसके खात्में की बात नही करते हैं। अफसोस तो जता देते है पर अपने अंदर झाकते नही कि हम भी इसके कितने जिम्मेदार है। कभी तो सोचती हूं जानवर भी इन लोगों के लिये सही शब्द नही है क्योकि जानवर भी ऐसी हरकतें नही करते है। आप ही बताइये इन सूट बूट में कॉलेज और आॅफिस जाने वाले इन ****** को मैं क्या कहूं। इनको इनकी हरकत का एहसास दिलाने के लिए क्या किया जाएं ये मोटी चमड़ी वाले है इसलिए यहां जोर से मार करनी पड़ेगी। पूरे पुरुष वर्ग के  नाम पर धब्बा लगाते ये****** और की नही तो अपने वर्ग का तो लिहाज तो रख ही सकते है क्योकि इन्हें बर्दाश नही कि कोई इन पर और इनके वर्ग पर अंगुली उठाए। बस अब आप से गुजारिश है कि बिना कुछ करें ही सुधर जाओं नही तो वो होगा जो आपने सोचा नही होगा क्योकि गुस्से का अंबार एक दिन जरुर फूटता है।

Saturday 18 May 2013

भागमभाग में सब लापता

यहां कोई किसी को कोई रास्ता नही देता
मुझे गिरा के अगर तुम संबल सको तो चलो