Monday 3 June 2013

ये अपना देश है..........

ये अपना देश है यहां तो घुटन महसूस होती है। आज से दो महीने पहले मैं अपने एक नये सफर पर निकली मुझे एक छोटी सी नौकरी मिली जिसके लिए रोज मुझे लगभग डेढ़ घंटे का सफर टेÑन, आॅटो और कुछ खुद से तय करना पड़ता है। मैं आजाद पंरिदा खुशी-खुशी अपनी नजर से सामाज देखेने निकल पड़ीआज पूरे दो महीने हो चुके है और इन दो महीनों ने मुझे जहां मेरी जिंदगी की पहली कमाई, मेरा पहला आॅफिस, मेरा पहला काम दिया है वही इस समाज ने मुझे बहुत रूलाया भी है। मुझे यकीन नही होता कि ये मेरा देश मेरा समाज है जो हर वक्त किसी ना किसी को कुचलता रहता है। मैं बड़ी खुशमिजाज आज एक मुरझाया हुआ फूल बन चुकी हूं। मुझे 65 साल पुराने इस आजाद देश में घुटन महसूस होती है। टेÑन के इंतजार में स्टेशन पर घूरती नजरें, और जब कहां जाएं जरा सुधर जाओं तो बेशर्मी भरे सवाल कि हमनें किया क्या है?, हर वक्त वो बयानबाजी जो चार लड़के अपने गुप्र मैं खड़े होकर मुझ जैसी लड़की पर करते नजर आते है। वो अपने पिता की उम्र के समान अकंल जो बेशर्मी भरी नजरों से देखते है। मैं रोना नही चाहती, मैं रुकना नही चाहती बस चाहती ये हूं कि इन जानवरों का इलाज हो जाएं। क्योकि ये एक ऐसा माहौल बना रहे है जो ये कहने पर मजबूर कर रहे है कि बाहर निकलने से बेहतर घर में ही दफन हो जाओ। ऐसा नही कि इस सफर मैं मुझे सिर्फ जानवरों से ही पाला पड़ा है। दुनिया अच्छाई से चलती है चाहे वो सिर्फ 2 प्रतिशत ही क्यो ना हो और मुझे वो भी मिलें पर इन बाकी के जानवरों का क्या जो घर से बहुत सारी लड़कियों को निकलने ही नही देते। लोग दिल्ली जैसी घटना पर भी जब लड़कियों की कमी निकालते है पर उसके खात्में की बात नही करते हैं। अफसोस तो जता देते है पर अपने अंदर झाकते नही कि हम भी इसके कितने जिम्मेदार है। कभी तो सोचती हूं जानवर भी इन लोगों के लिये सही शब्द नही है क्योकि जानवर भी ऐसी हरकतें नही करते है। आप ही बताइये इन सूट बूट में कॉलेज और आॅफिस जाने वाले इन ****** को मैं क्या कहूं। इनको इनकी हरकत का एहसास दिलाने के लिए क्या किया जाएं ये मोटी चमड़ी वाले है इसलिए यहां जोर से मार करनी पड़ेगी। पूरे पुरुष वर्ग के  नाम पर धब्बा लगाते ये****** और की नही तो अपने वर्ग का तो लिहाज तो रख ही सकते है क्योकि इन्हें बर्दाश नही कि कोई इन पर और इनके वर्ग पर अंगुली उठाए। बस अब आप से गुजारिश है कि बिना कुछ करें ही सुधर जाओं नही तो वो होगा जो आपने सोचा नही होगा क्योकि गुस्से का अंबार एक दिन जरुर फूटता है।

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