Friday 26 July 2013

बावरी

बावरी सी धडकनों में
बावरा एहसाह है,
बावरी से होठों पे
बावरा सा साज है
बावरी सा गीत मेरा,
बावरा सा राग है
बावरें से मन में,
बावरी सी दौड़ है
बावरें के ख्यालों में
बावरा सा चेहरा,
बावरी कहानी मेरी,
बावरी सी हूं मैं
बावरी सी राहों में,
बावरी सी चाल है
बावरें हुए है आज,
बावरें हम कल में है
बावरी सी बोली में,
बावरें से शब्द है
बावरें सी दुनिया में,
बावरें से पात्र है
बावरी सी सांसे,
बावरा सा झाल है
बावरी सी शाम में,
बावरे से हम है

Thursday 11 July 2013

ईमानदारी सबसे मंहगा शौक है.......

मैं कभी उनसे मिली तो नही पर 5 मिनट की टीवी पर आई रिर्पोट ने मुझे इतना प्रभावित कर दिया कि उन पर लिखे बिना में रह ना सकी। भगवती प्रसाद की मौत के बाद मैं उन्हें जान पाई। यूपी के श्रावस्ती जिले से दो बार विधायक रहे भगवती प्रसाद की मौत गरीबी में इलाज न करा पाने की वजह से हुई। उनकी कफन तक के लिए पैसे पड़ोसियों ने दिए हैं। भगवती जी कहते थे कि बंगल] गाड़ी हो या ना हो ईमानदारी है हम उसमें रहते है। ईमानदारी ही मेरी सबसे बड़ी दौलत है। यही कारण है कि दो बार विधायक रहें] पूर्व विधायक के पास अपने ईलाज तक के लिए रूपये नही थे। पता चला है 1966 में 1800 रूपये की भैंस बेचकर भगवती प्रसाद जी ने चुनाव लड़ा था। विधायक के बाद उन्होंने अपना छोटा सा काम शुरू  कर दिया। अपनी ईमानदारी के कारण भले ही उन्होंने गरीबी में जीवन बिताया] बीमारी में बिना इलाज के रहे। आज के इस समाज में अगर सबसे बड़ा मंहगा शौक है तो वो ईमानदारी है। जिसकी कीमत दिखती नही महसूस की जाती है। भगवती प्रसाद जैसे नेता, इंसान समाज बहुत है बस उनकी कीमत को बहुत कम प्राइम टाइम, अखबारों मे दिखाया जाता है। आज की आपाधापी व घोटालों में सबसे महंगा शौक कही छुप ही जाता है। इनके बारे में लिखना और पढ़ना चाह रही थी लेकिन गूगल पर भी इस ईमानदारी के पूजक के बारें में ज्यादा जानकारी नही थी। बस यही भगवती प्रसाद की आत्मा को शांति मिले।

Monday 8 July 2013

मन की.......

आज कुछ ख्वाब फिर रचें गए

आज कुछ बुनियाद फिर रखी गई

आज से फिर सवरनें की कोशिश की गई

आज आवाज मन की फिर सुनी गई