रोज मैं जाती उस गाड़ी में जो जाती
कश्मीर को
सोचा था एक दिन बैठ कर जाउंगी
उस छोर पर
जहां मेरे सपनो की दुनिया
सजती है।
जैसलमेर से जम्मू तक
फिर वहां से कोई और गाड़ी
जो लेकर जाएंगी मुझे धरती के स्वर्ग में
इच्छा है मेरी रहने की
वहां
सटे पहाड़ो पर चीड़ के पेड़ो पर
बर्फ की बारिश
की साक्षी होना ख्वाहिश
ज्यादा तो नही बस एक छोटा सा
हो खुद का वहां आशियाना
जहां सूरज की किरण
चिड़ियों के साज का हो
रोज-रोज नजियारा
सकरें रास्तें पर सपनों को लादकर
एक बार तो जाना वहां
जहां रहना है ख्वाब मेरा
बस सोचती रहती हूं कुछ
हर पल मैं जब कुछ दिनों से
रोज मैं चढती हूं उस गाड़ी में
जो जाती कश्मीर को
आज के मौसम को देखकर
सोचा तो बहुत
कि धरती के स्वर्ग पर कब होगें
मेरे कदम] पर
अचानक मेरे स्टेशन ने सोच पर
पर पूर्णविराम लगा दिया।
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